मगर एक चूतिये की पड़ गई नजर गंदी
पूरा दिन फिरते किसी मूत से ना डरते थे
रात भर फोन पे हम चुमा चाटी करते थे
फिर उसके बाद उसका फोन बिजी आने लगा
बाद में नंबर उसका स्विच ऑफ बताने लगा
बन गए दुश्मन सभी कोई भी यार ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा और प्यार प्यार ना रहा
बाद महीने के मुझे एक दिन मिला मौका
मैंने एक सांप के संग उसको गली में रोका
उठाया हाथ मैंने साथ किसके सोने लगी
देखके यार मेरे संग सिसक के रोने लगी
तमाम खुदाओं कि वो झूठी कसमें खाने लगी
मैंने धूत कारा बाबू रूठ घर को जाने लगी
गया था साथ उसके यार जो कंधा बन के
वो लौटा दो दिनों में बंदी का बंदा बन के
अब किसी बाबू का हमको इंतजार ना रहा
दोस्त दोस्त ना रहा और प्यार प्यार ना रहा
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